लफ्ज़ों के सहारे अक्सर मुशायरे जीत लिया करते थे
पर अब तो जैसे खंडहरों का बुत हो गया हूँ मैं,
शायरी भूल गया हूँ मैं।
यूँ तो हमने लोगों से हमेशा ही नज़रें चुराईं थी
लेकिन दीदार-ए-दुनिया से नफरत का अब आलम और है
घर से सिर्फ मस्ज़िद तक ही चहलकदमी हुआ करती थी पहले
पर अब तो जैसे वो रास्ता भी भटक गया हूँ मैं,
शायरी भूल गया हूँ मैं।
बना के खुदा तुझे, खुद तेरे आगे नाचीज़ हो गया
ये बोल के एक दिन खुदा से भी उलझ बैठा यूँ तो
ज़िंदादिली इतनी थी के जहन्नुम में मुस्कुराते शायद
पर अब तो जैसे साँसें भुलाने में मशगूल हो गया हूँ मैं,
शायरी भूल गया हूँ मैं।
If this is what you create after forgetting, may you never reacquaint with the art.
ReplyDeleteAbsolutely wonderful!
I seriously need to forget all this shit. Heard you ll be treating the sick, soon. Any prescription for this one?
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